ट्रेन के डिब्बों का रंग नीला, लाल और हरा क्यों होता है? जानिए कारन
आप सभी ने कभी न कभी ट्रेन से यात्रा की होगी। आपने देखा होगा कि ट्रेन के ज्यादातर डिब्बों का रंग नीला या लाल होता है।
इसके अलावा कुछ ट्रेनों के डिब्बे हरे या भूरे रंग में भी नजर आ रहे हैं। ऐसे में क्या कभी आपके दिमाग में यह बात आई है
कि सभी ट्रेनें भारतीय रेलवे के माध्यम से ही संचालित होती हैं, फिर इन ट्रेनों के डिब्बों के रंग अलग-अलग क्यों रखे गए हैं?
दरअसल ट्रेन के डिब्बों के रंग और डिजाइन के भी अलग-अलग मायने होते हैं। कोचों के रंग और डिजाइन उनकी विशेषताओं को देखकर तय किए जाते हैं। आइए आपको बताते हैं-
नीला रंग सबसे आम नीले रंग के बॉक्स हैं। ये ज्यादातर ट्रेनों में लगाए जाते हैं। इन्हें इंटीग्रल कोच कहा जाता है।
इंटीग्रल कोच फैक्ट्री चेन्नई, तमिलनाडु में है। यह फैक्ट्री भारतीय रेलवे के अधीन काम करती है और यह जनरल, एसी, स्लीपर, डेमू और मेमू जैसे सभी प्रकार के कोच बनाती है।
ये कोच लोहे के बने होते हैं और इनमें एयर ब्रेक लगे होते हैं। इन्हें मेल एक्सप्रेस या सुपरफास्ट ट्रेनों में लगाया जाता है
लाल रंग ये खास तरह के कोच होते हैं। उन्हें वर्ष 2000 में जर्मनी में भारत लाया गया था।
लाल रंग के इन कोचों को लिंके हॉफमैन बुश (एलएचबी) कोच कहा जाता है। ये कोच एल्युमिनियम के बने हैं और दूसरे कोचों के मुकाबले हल्के हैं।
इससे उनकी स्पीड बढ़ जाती है। एलएचबी कोच वाली ट्रेनों की गति 160 किमी प्रति घंटे से लेकर 200 किमी प्रति घंटे तक हो सकती है।
गरीबरथ में हरे रंग के डिब्बों का प्रयोग किया जाता है। वहीं, मीटर गेज ट्रेनों में भूरे रंग के कोच का इस्तेमाल किया जाता है।
रंग में बदलाव यात्रियों के अनुभव को बेहतर बनाने के रेलवे के प्रयासों का हिस्सा है।